मेरे घर के आसपास
कोई पेड़ नहीं,
कोई परिंदा नहीं,
कोई नदी नहीं,
कोई झरना नहीं.
घर की दीवार पर मैंने
एक पेंटिंग लगा ली है,
जिसमें जंगल है,
नदी है,
झरना है,
पेड़ है,
घोंसला है,
परिंदे हैं.
अब अपने घर में बैठे-बैठे
मैं सब कुछ देख लेता हूँ,
अब मुझे घर से निकलने की
ज़रूरत ही नहीं पड़ती.
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
04/08/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
हाँ आज का सुविधाभोगी मनुष्य यही सोचता है।प्रकृति की बनावटी तस्वीरों को सजा कर खुश होता है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-08-2019) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक- 3418) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भगवान को भेंट - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआज का सच तो यही है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
अपनी में सिमटती दुनिया का सच बताया है आपने ओंकार जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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