आओ, बारिश में निकलें,
तोड़ दें छाते,
फाड़ दें रेनकोट,
भिगो लें बदन.
सड़क के गड्ढों में
पानी जमा है,
देखते हैं
उसमें उछलकर
कैसा लगता है.
देखते हैं
कि बंद पलकों पर
जब बूँदें गिरती हैं,
तो कैसी लगती हैं,
जब बरसते पानी से
बाल तर हो जाते हैं,
तो कैसा लगता है.
कैसा लगता है,
जब कपड़े गीले होकर
बदन से चिपक जाते हैं,
जब बरसती बूँदें कहती हैं,
'बंद करो अपनी बातचीत,
अब मेरी सुनो.'
आओ, निकल चलें बारिश में,
निमोनिया होता है,
तो हो जाय,
सूखे-सूखे जीने से
भीगकर मर जाना अच्छा है.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-07-2018) को "चाँद पीले से लाल होना चाह रहा है" (चर्चा अंक-3047) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 29 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छा है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....., बचपन की शरारतें याद आ गई आपकी कविता पढ़ कर ।।
जवाब देंहटाएंवाह , प्रभावशाली अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना नैसर्गिक जी लें बनावट को छोड़।
जवाब देंहटाएंवाह।
सूखे-सूखे जीने से
जवाब देंहटाएंभीगकर मर जाना अच्छा है...बेहतरीन सर. बेहद सच्ची बात.
सुन्दर कवितायेँ
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंबचपन में लौटना ज़रूरी है कभी तो ... फिर बारिशों से अच्छा क्या मौसम ...
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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