उतार दो गठरियाँ अंधविश्वासों की, कट्टरता की, पूर्वाग्रहों की. फेंक दो संदूक ईर्ष्या और द्वेष के, नफ़रतों के, बदले की भावना के. ज़िन्दगी का सफ़र लम्बा है, सामान की यहाँ कोई सीमा नहीं है, पर हल्के चलो, सहूलियत होगी.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-07-2018) को "एक नंगे चने की बगावत" (चर्चा अंक-3041) (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! राधा तिवारी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-07-2018) को "एक नंगे चने की बगावत" (चर्चा अंक-3041) (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Ye kitna sundar hai!!
जवाब देंहटाएंसत्य वचन!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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