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शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

३१६. असमंजस

बहुत संभलकर बोलता हूँ मैं,
तौलता हूँ शब्दों को बार-बार,
पर लोग हैं 
कि निकाल ही लेते हैं
मेरे थोड़े-से शब्दों के 
कई-कई अर्थ.

जब मैं कुछ नहीं बोलता,
तो भी निकाल लिए जाते हैं 
मेरी चुप्पी के कई-कई अर्थ.

अलग-अलग लोग 
मेरी चुप्पी 
या मेरे शब्दों के 
अलग-अलग अर्थ निकालते हैं,
मुझसे अलग-अलग सवाल करते हैं.

मैं असमंजस में हूँ 
कि उनके सवालों का जवाब 
मैं शब्दों में दूं 
या चुप्पी में?

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 08 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-07-2018) को "ओटन लगे कपास" (चर्चा अंक-3026) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. विचारों को मथती विचारणीय रचना।
    ओंकार जी,कश्मकश में उलझा मन अक्सर यही सोचता है।
    सुंदर।

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  4. निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  5. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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