वे महाराजा हैं,
वही करेंगे,
जो करना चाहेंगे,
इक्कीसवीं सदी के हैं,
इसलिए थोड़ा नाटक करेंगे,
जताएंगे
कि वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं,
खुले मन से तुम्हें सुनना चाहते हैं,
पर तुम चुप रहना।
वही करेंगे,
जो करना चाहेंगे,
इक्कीसवीं सदी के हैं,
इसलिए थोड़ा नाटक करेंगे,
जताएंगे
कि वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं,
खुले मन से तुम्हें सुनना चाहते हैं,
पर तुम चुप रहना।
किसी का बोलना उन्हें
पसंद नहीं है,
तुम कितना भी संभल कर बोलो,
न जाने उन्हें क्या बुरा लग जाए.
कायदे-कानून की बात मत करना,
ये उनके लिए नहीं बने हैं,
उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं
कि कोई उन्हें
उन नियमों की याद दिलाए
जो उन्होंने खुद बनाए हैं
तुम्हारे और मेरे लिए।
ज़्यादा बोलोगे
तो उन्हें ज़्यादा लिखना पड़ेगा
सोचना पड़ेगा
कि तुम्हारे तर्कों को कैसे काटें
कैसे तुम्हें सबक सिखाएं,
कैसे खुद को सही ठहराएं।
अपना मुंह बंद,
नज़रें नीची रखना,
मत भूलना
कि वे राजा हैं
और तुम कुछ भी नहीं,
प्रजा भी नहीं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-06-2018) को "तालाबों की पंक" (चर्चा अंक-3011) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आप,आप, आप और आप - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंयथार्थवादी लेखन..
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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