आजकल ख़तरे में हैं तितलियां।
आजकल कोई भी,
कहीं भी,
किसी भी तितली के
पर नोच सकता है,
महफूज़ नहीं हैं आजकल तितलियां।
नहीं मिलती आजकल
रंग - बिरंगी,मस्त,
उड़नेवाली तितलियां,
ऐसी तितलियों पर
प्रतिबंध है आजकल।
खुले घूमते हैं नोचने वाले,
तितलियों से पूछा जाता है,
क्या किया उन्होंने
कि नोच लिए गए उनके पर।
दरवाजे बंद हैं सब
तितलियों के लिए,
अब ख़ुद ही करनी होगी उन्हें
अपने परों की हिफाज़त,
तमाम तितलियों के लिए
यह परीक्षा का समय है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-06-2018) को "रखना कभी न खोट" (चर्चा अंक-2998) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंतितलियों को खुद ही करनी है अपनी हिफाज़त ... सही लिखा है ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-06-2018) को "मौसम में बदलाव" (चर्चा अंक-2999) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हैवानियत का समय है ..भला तितलियाँ कहाँ तक परीक्षा देंगी .
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