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शनिवार, 16 जून 2018

३१३. अमलतास से


अच्छे लगते हो तुम अमलतास,
जब खिल उठते हो वसंत में,
पर मैं जब तुम्हें देखता हूं,
तो सोचता हूं
कि तुम इतने पीले क्यों हो.

तुम सुंदर तो बहुत हो,
पर कमज़ोर भी लगते हो,


मेरी मानो अमलतास,
तो बगल में खड़े गुलमोहर से
थोड़ी सी सुर्ख़ी ले लो,
सुंदर भी लगोगे, ताकतवर भी,
वरना बेवजह पत्थर झेलोगे.

जो कमज़ोर दिखते हैं,
उन्हें अपनी ख़ूबियों के बावज़ूद
पत्थर खाने ही पड़ते हैं.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता ! रचना के साथ अपना नाम भी दे दिया कीजिए .

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १८ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १८ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीया 'शशि' पुरवार जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/




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  4. वाह क्या बात .....इस तरह से कभी सोचा नहीं

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  5. जो कमज़ोर दिखते हैं,
    उन्हें अपनी ख़ूबियों के बावज़ूद
    पत्थर खाने ही पड़ते हैं.
    Kitna sahi hai!

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