वह जो भी है,
उसका श्रेय या दोष
उन्हें दो,
जिन्होंने उसे बनाया है.
उसके माता-पिता,
उसका परिवार,
उसके गुरु,
उसके मित्र
और वे अनगिनत लोग,
जो उससे जुड़े.
ईंट-ईंट जुड़कर
सीमेंट-सरिया मिलकर
इमारत बनती है.
अगर वह सिर उठाए
बुलंद खड़ी रहे,
तो श्रेय इमारत को नहीं,
हर उस हाथ को है,
जिसने उसमें ईंट रखी,
सीमेंट-सरिया मिलाया.
और अगर इमारत
भरभराकर गिर जाय,
तो तबाही की ज़िम्मेदारी
वही लोग लें,
जिन्होंने उसे बनाया था.
उसका श्रेय या दोष
उन्हें दो,
जिन्होंने उसे बनाया है.
उसके माता-पिता,
उसका परिवार,
उसके गुरु,
उसके मित्र
और वे अनगिनत लोग,
जो उससे जुड़े.
ईंट-ईंट जुड़कर
सीमेंट-सरिया मिलकर
इमारत बनती है.
अगर वह सिर उठाए
बुलंद खड़ी रहे,
तो श्रेय इमारत को नहीं,
हर उस हाथ को है,
जिसने उसमें ईंट रखी,
सीमेंट-सरिया मिलाया.
और अगर इमारत
भरभराकर गिर जाय,
तो तबाही की ज़िम्मेदारी
वही लोग लें,
जिन्होंने उसे बनाया था.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वेटर का बदला - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-12-2017) को "क्रिसमस का त्यौहार" (चर्चा अंक-2828) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
सत्य है जिसने आकार दिया उत्तरदायित्व उसका ही है ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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