इस बार की दिवाली कुछ अलग थी,
बस थोड़े से चिराग़ जल रहे थे,
अचानक तेज़ हवाएं चलीं,
एक-एक कर बुझ गए दिए सारे,
पर एक दिया जलता रहा,
लड़ता रहा तब तक,
जब तक थक-हारकर
चुप नहीं बैठ गईं हवाएं.
उस एक चिराग़ ने प्रज्वलित किए
वे सारे दिए, जो बुझ गए थे
और बहुत से ऐसे दिए भी,
जिन्हें जलाया नहीं गया था.
अब सैकड़ों-हज़ारों दिए जल रहे हैं
आत्म-विश्वास से भरपूर,
सिर उठाए खड़ी है उनकी लौ
और किसी कोने में सहमी सी बैठी हैं
तेज़ हवाएं.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"एक दिया लड़ता रहा" (चर्चा अंक 2765)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअब सैकड़ों-हज़ारों दिए जल रहे हैं
जवाब देंहटाएंआत्म-विश्वास से भरपूर,
सिर उठाए खड़ी है उनकी लौ
और किसी कोने में सहमी सी बैठी हैं
तेज़ हवाएं.
बहुत सुंदर कविता.
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंआत्मविश्वास से भरपूर
सिर उठाए खड़ी है उनकी लौ
वाह!!!
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंऔर किसी कोने में सहमी सी बैठी हैं
जवाब देंहटाएंतेज़ हवाएं.
Wahhhhh। बहुत सुंदर
वाह! लाज़वाब
जवाब देंहटाएंजब एकता की लौ जलती है तो इस इंक़लाबी मशाल के आगे कोई टिक नहीं सकता। सुन्दर प्रस्तुति, साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in
सच है होंसला तो बस एक ही होता है ... उठा देता है पूरे समाज को ... जला देता है हर दिया ... सार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत, बहुत सुंदर।
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