मुझे पता था
कि तुम दरवाज़े पर हो,
तुम्हें भी पता था
कि मुझे पता है.
मैं इंतज़ार करता रहा
कि तुम दस्तक दो,
तुम सोचती रही
कि मैं बिना दस्तक के
खोल दूं दरवाज़ा.
दोनों ही चाहते थे
कि दरवाज़ा खुल जाय,
पर न तुमने दस्तक दी,
न मैंने दरवाज़ा खोला.
कि तुम दरवाज़े पर हो,
तुम्हें भी पता था
कि मुझे पता है.
मैं इंतज़ार करता रहा
कि तुम दस्तक दो,
तुम सोचती रही
कि मैं बिना दस्तक के
खोल दूं दरवाज़ा.
दोनों ही चाहते थे
कि दरवाज़ा खुल जाय,
पर न तुमने दस्तक दी,
न मैंने दरवाज़ा खोला.
आपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 9 अप्रैल 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
जवाब देंहटाएंचर्चाकार
"ज्ञान द्रष्टा - Best Hindi Motivational Blog
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज रविवार (09-04-2017) के चर्चा मंच
जवाब देंहटाएं"लोगों का आहार" (चर्चा अंक-2616)
पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब !,सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंयहो तो मौन की दूरी है जो सदियों नहीं ख़त्म होती ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण वर्णन है,
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये... शुभकामनाएँ...