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शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

२३५.समुद्र से


समुद्र, तुम रात-रात भर 
जो शोर करते हो,
किसे बुलाते हो?
माना कि तुम जानते हो,
यह सोने का समय नहीं है,
माना कि बहुत सी बाते हैं,
जो चीख-चीख के कहना ज़रूरी है,
पर कोई सुननेवाला भी तो हो.

समुद्र, यहाँ सब सो रहे हैं,
कोई नहीं सुन रहा तुम्हें,
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता 
तुम्हारे गरजने से.

समुद्र, बंद करो चिल्लाना,
मेरी मानो,
थोड़ी देर तुम भी सो जाओ.

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 13 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. रात हो या दिन - इंसान कभी समुद्र की पुकार सुन ही नहीं पाता - कहने को निद्रा टूट गयी पर चेतना नहीं लौटी

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  3. बहुत गहरी बात ... समुद्र को कोई नहीं सुनना चाहता ... सब शोर कहते हैं ...

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