जो चकरी की तरह घूमे, वह नई जवानी का आकर्षण है; जो फुलझड़ी की तरह जले, वह नूतन प्रेम का एहसास है; जो अनार की तरह चले, वह जवानी का उन्माद है; जो बम की तरह फटे, वह विरोध के ख़िलाफ़ विद्रोह है; जो दिए की तरह जले, वह जीवन-भर का प्यार है.
जय मां हाटेशवरी.... आप ने लिखा... कुठ लोगों ने ही पढ़ा... हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.... दिनांक 06/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ.... चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है... इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं... टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है.... हार्दिक शुभकामनाओं के साथ... कुलदीप ठाकुर...
जय मां हाटेशवरी....
उत्तर देंहटाएंआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 06/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर... लिंक की जा रही है...
इस चर्चा में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
बहुत सुंदर.
उत्तर देंहटाएंडायनामिक
उत्तर देंहटाएंबहुत सुंदर.
बहुत बढ़िया और भावपूर्ण.....
उत्तर देंहटाएंबहुत बढ़िया ।
उत्तर देंहटाएंekdum sahi!!
उत्तर देंहटाएंसुंदर और भावपूर्ण
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