मत पहनाओ मुझे फूलों का हार,
मत स्वागत करो मेरा गुलदस्तों से,
मेरी शव-यात्रा को भी बख्श देना,
मत सजाना मेरा जनाज़ा फूलों से.
उन्हें खिल लेने दो डाल पर,
जी लेने दो अपनी ज़िन्दगी,
लहलहा लेने दो हवाओं के साथ,
नहा लेने दो बारिश में,
महसूस लेने दो बदन पर
धूप और चांदनी,
जकड़ लेने दो आलिंगन में
ओस की बूँद,
फिर उन्हें झर जाने दो,
सूख जाने दो उन्हें,
मिट्टी में मिल जाने दो.
डाल से तोड़े गए फूल
गुमसुम-से होते हैं,
मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते,
ऐसे फूल मुझे काँटों से लगते हैं
और उन्हीं की तरह चुभते हैं.
मत स्वागत करो मेरा गुलदस्तों से,
मेरी शव-यात्रा को भी बख्श देना,
मत सजाना मेरा जनाज़ा फूलों से.
उन्हें खिल लेने दो डाल पर,
जी लेने दो अपनी ज़िन्दगी,
लहलहा लेने दो हवाओं के साथ,
नहा लेने दो बारिश में,
महसूस लेने दो बदन पर
धूप और चांदनी,
जकड़ लेने दो आलिंगन में
ओस की बूँद,
फिर उन्हें झर जाने दो,
सूख जाने दो उन्हें,
मिट्टी में मिल जाने दो.
डाल से तोड़े गए फूल
गुमसुम-से होते हैं,
मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते,
ऐसे फूल मुझे काँटों से लगते हैं
और उन्हीं की तरह चुभते हैं.
बहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : इंसानियत दफ़न होती रही
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-05-2015) को "सिर्फ माँ ही...." {चर्चा अंक - 1971} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंफूल डाल पर ही सुन्दर लगते हैं...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसच है की फूल खिलते हिये डाल पर झूमते हुए भी अच्छे लगते हैं ...
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