गहरा रही है रात,
दुबके पड़े हैं सब घरों में,
चहचहाना बंद है परिंदों का,
सो रहे हैं वे भी घोंसलों में,
सुनसान पड़ी हैं सड़कें,
दूर गली में भौंक रहा है
कोई आवारा कुत्ता,
पर भ्रम में मत रहना,
कहीं सो न जाना.
हो सकता है,
जी-भर शराब पीकर
निकल पड़ा हो कोई,
अपनी आलीशान कार में,
हवा की रफ़्तार से.
कोई ज़रूरी नहीं
कि वह सड़क पर चले,
पटरी पर भी चल सकता है,
तुम्हें कुचल भी सकता है,
परिवार के साथ या अकेले,
जैसा वह चाहे.
पटरी पर सोनेवालों, उठो,
कानून का पालन करो,
क्या सुना नहीं तुमने,
जानकारों का कहना है
कि पटरी चलने के लिए होती है,
सोने के लिए नहीं.
दुबके पड़े हैं सब घरों में,
चहचहाना बंद है परिंदों का,
सो रहे हैं वे भी घोंसलों में,
सुनसान पड़ी हैं सड़कें,
दूर गली में भौंक रहा है
कोई आवारा कुत्ता,
पर भ्रम में मत रहना,
कहीं सो न जाना.
हो सकता है,
जी-भर शराब पीकर
निकल पड़ा हो कोई,
अपनी आलीशान कार में,
हवा की रफ़्तार से.
कोई ज़रूरी नहीं
कि वह सड़क पर चले,
पटरी पर भी चल सकता है,
तुम्हें कुचल भी सकता है,
परिवार के साथ या अकेले,
जैसा वह चाहे.
पटरी पर सोनेवालों, उठो,
कानून का पालन करो,
क्या सुना नहीं तुमने,
जानकारों का कहना है
कि पटरी चलने के लिए होती है,
सोने के लिए नहीं.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंलोगों की संवेदनहीनता पर बहुत गहरा व्यंग्य !
जवाब देंहटाएं-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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Very touching
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण ॥
जवाब देंहटाएंकरार व्यंग है समाज और उसके ठेकेदारों पर ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।