खूब रोशनी फैलाओ,
अँधेरा दूर भगाओ,
भटकों को राह दिखाओ,
इसी में छिपी है तुम्हारी ख़ुशी,
यही है तुम्हारे होने का मक़सद.
पर जब तुम्हारा तेल चुक जाय,
तुम्हारी बाती जल जाय,
तुम जलने के काबिल न रहो,
तो बची-खुची कालिख देखकर
हैरान मत होना,
याद रखना कि
ऐसा ही होता है सबके साथ,
तुम कोई अलग नहीं हो.
कोई भलाई की राह पर निकले
तो गाँठ बांधकर निकले कि
जो भी खुद को जलाकर
रोशनी फैलाता है,
आखिर में उसके हिस्से में
कालिख ही आती है.
अँधेरा दूर भगाओ,
भटकों को राह दिखाओ,
इसी में छिपी है तुम्हारी ख़ुशी,
यही है तुम्हारे होने का मक़सद.
पर जब तुम्हारा तेल चुक जाय,
तुम्हारी बाती जल जाय,
तुम जलने के काबिल न रहो,
तो बची-खुची कालिख देखकर
हैरान मत होना,
याद रखना कि
ऐसा ही होता है सबके साथ,
तुम कोई अलग नहीं हो.
कोई भलाई की राह पर निकले
तो गाँठ बांधकर निकले कि
जो भी खुद को जलाकर
रोशनी फैलाता है,
आखिर में उसके हिस्से में
कालिख ही आती है.
जो भी खुद को जलाकर
जवाब देंहटाएंरोशनी फैलाता है,
आखिर में उसके हिस्से में
कालिख ही आती है....sahi kaha..
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (06-04-2015) को "फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर" { चर्चा - 1939 } पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस कठिन राह पे चलने वालों को वैसे भी अंजाम की परवा कहाँ होती है ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ...
शायद आज का सच यह ही है...बहुत सारगर्भित रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !