शिव, वह गंगा,
जो कभी तुम्हारी जटाओं से निकली थी,
अब मैली हो गई है,
बल्कि हमने कर दी है,
अब चाहकर भी हमसे
साफ़ नहीं हो रही,
शायद हमारी इच्छा-शक्ति
या सामर्थ्य में कोई कमी है.
शिव, तुमसे विनती है,
तुम अपनी गंगा फिर से
अपनी जटाओं में समेट लो.
जिस तरह तुमने कभी
समुद्र-मंथन से निकला विष
अपने उदर में रखा था,
अब गंगा का मैल
अपनी जटाओं में रख लो
और एक बार फिर हमें दे दो
वही पहलेवाली निर्मल गंगा.
जो कभी तुम्हारी जटाओं से निकली थी,
अब मैली हो गई है,
बल्कि हमने कर दी है,
अब चाहकर भी हमसे
साफ़ नहीं हो रही,
शायद हमारी इच्छा-शक्ति
या सामर्थ्य में कोई कमी है.
शिव, तुमसे विनती है,
तुम अपनी गंगा फिर से
अपनी जटाओं में समेट लो.
जिस तरह तुमने कभी
समुद्र-मंथन से निकला विष
अपने उदर में रखा था,
अब गंगा का मैल
अपनी जटाओं में रख लो
और एक बार फिर हमें दे दो
वही पहलेवाली निर्मल गंगा.
ममर्स्पर्शी ......!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-04-2015) को "अपनापन ही रिक्तता को भरता है" (चर्चा - 1950) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हमने जो करना था किया, अब जो करेंगे वे ही करेंगे।
जवाब देंहटाएंजिस तरह तुमने कभी
जवाब देंहटाएंसमुद्र-मंथन से निकला विष
अपने उदर में रखा था,
अब गंगा का मैल
अपनी जटाओं में रख लो
और एक बार फिर हमें दे दो
वही पहलेवाली निर्मल गंगा.
इस मर्तबा हम उसे गन्दी न होने देंगे
भारत धर्मी समाज जागा है
अब तो बस वही कर सकते है इस गंगा की सफाई ... हम तो बस इसे गंदा ही करते रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर उद्देश्यपूर्ण रचना ..
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
भरोसा रखो गंगा सफाई अभियान है ना एक मंत्री भी है
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
तन कर देखो तो मैली है
जवाब देंहटाएंझुककर देखो तो दर्पण।
बहुत खूब।
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