बहुत दिन हो गए,
चलो, एक बार फिर
तुम्हारा हाथ मरोड़ दूं,
बस उतना ही
कि तुम्हें दर्द न हो,
पर तुम दर्द होने का
नाटक कर सको.
मैं तुरंत छोड़ दूं तुम्हारा हाथ
और तुम नाटक कर सको
मुझसे रूठ जाने का.
मैं तुम्हें मनाऊँ
और तुम नाटक करो
न मानने का.
तुम्हारे रूठे रहने पर
मैं तुमसे रूठने का नाटक करूँ
और घबराकर तुम मुझे मनाओ.
बचपना क्या छोड़ा
अजनबी हो गए हम,
चलो, कुछ बचकानी हरकतें करें,
थोड़ा-सा नाटक करें,
साथ-साथ चलने के लिए
थोड़ा बचपना, थोड़ा नाटक
बहुत ज़रुरी है.
चलो, एक बार फिर
तुम्हारा हाथ मरोड़ दूं,
बस उतना ही
कि तुम्हें दर्द न हो,
पर तुम दर्द होने का
नाटक कर सको.
मैं तुरंत छोड़ दूं तुम्हारा हाथ
और तुम नाटक कर सको
मुझसे रूठ जाने का.
मैं तुम्हें मनाऊँ
और तुम नाटक करो
न मानने का.
तुम्हारे रूठे रहने पर
मैं तुमसे रूठने का नाटक करूँ
और घबराकर तुम मुझे मनाओ.
बचपना क्या छोड़ा
अजनबी हो गए हम,
चलो, कुछ बचकानी हरकतें करें,
थोड़ा-सा नाटक करें,
साथ-साथ चलने के लिए
थोड़ा बचपना, थोड़ा नाटक
बहुत ज़रुरी है.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 31/08/2014 को "कौवे की मौत पर"चर्चा मंच:1722 पर.
जवाब देंहटाएंहाथ मत छूना नाटक तक ठीक है :)
जवाब देंहटाएंmanobhaavo ki sundar prastuti
जवाब देंहटाएंजिंदगी में नाटक बहुत जरुरी है !
जवाब देंहटाएंगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
बचपना क्या छोड़ा
जवाब देंहटाएंअजनबी हो गए हम,
चलो, कुछ बचकानी हरकतें करें,
थोड़ा-सा नाटक करें,
साथ-साथ चलने के लिए
थोड़ा बचपना, थोड़ा नाटक
बहुत ज़रुरी है........ बहुत खूब .बधाई आपको
बहुत प्यारी सी कविता..........
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखन व रचना , ओंकार सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुन्दर भाव अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति आज के बासा रूटीन तोड़ती हुई शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का।
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण ... जरूरी है चाहे नाटक ही सही उस दुनिया में लौट आना ....
जवाब देंहटाएंये बचपना कब हमारी ज़िन्दगी से छूट जाता है, पता ही न चलता. बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंWaah umda rachna,,,!!
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