जो मैं समझता हूँ कि मैं हूँ,
दरअसल मैं वह नहीं हूँ.
मैं वह भी नहीं हूँ,
जो तुम समझते हो
कि मैं हूँ.
न तुम जानते हो,
न मैं
कि मैं क्या हूँ.
मेरा मैं
अनगिनत परतों के नीचे
कहीं दबा पड़ा है,
जिन्हें हटाकर देखना
नामुमकिन सा लगता है.
फिर भी कभी
मुझे पता चल गया
कि मैं क्या हूँ,
तो तुम्हें बता दूंगा,
तुम्हें भी अगर
भनक लग जाय
तो मुझे बता देना.
दरअसल मैं वह नहीं हूँ.
मैं वह भी नहीं हूँ,
जो तुम समझते हो
कि मैं हूँ.
न तुम जानते हो,
न मैं
कि मैं क्या हूँ.
मेरा मैं
अनगिनत परतों के नीचे
कहीं दबा पड़ा है,
जिन्हें हटाकर देखना
नामुमकिन सा लगता है.
फिर भी कभी
मुझे पता चल गया
कि मैं क्या हूँ,
तो तुम्हें बता दूंगा,
तुम्हें भी अगर
भनक लग जाय
तो मुझे बता देना.
फिर भी कभी
जवाब देंहटाएंमुझे पता चल गया
कि मैं क्या हूँ,
तो तुम्हें बता दूंगा,
तुम्हें भी अगर
भनक लग जाय
तो मुझे बता देना.-----
अपने होने की की पड़ताल करती
सुन्दर अनुभूतिको व्यक्त करती कविता
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है --
आजादी ------ ???
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 17/08/2014 को "एक लड़की की शिनाख्त" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1708 पर.
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंबूझो तो जाने?
जवाब देंहटाएंमैं का संसार अनोखा होता है ..... कभी विस्तृत तो कभी शून्य
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंअपने मैं की तलाश स्वयं खुद को ही करनी होती है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
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