मन के आसमान में आज
छाए हैं घने-काले बादल
विचारों और खयालों के,
तेज़ बह रही हैं
कल्पनाओं की आंधियां,
फिर भी न जाने क्यों
बरस नहीं रही एक भी बूँद,
लिखी नहीं जा रही
एक भी कविता....
छाए हैं घने-काले बादल
विचारों और खयालों के,
तेज़ बह रही हैं
कल्पनाओं की आंधियां,
फिर भी न जाने क्यों
बरस नहीं रही एक भी बूँद,
लिखी नहीं जा रही
एक भी कविता....
ख्यालों का साया ऐसा भी होता है .... कभी - कभी
जवाब देंहटाएंहोता है मन ऐसा भी कभी कभी ... शब्द बंध नहीं पाते ...
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