लहरों, मुझसे अठखेलियाँ मत करो.
तुम अचानक उछलकर आती हो,
मुझे आलिंगन में जकड़कर
गहरे तक भिगो जाती हो,
जब तक मैं कुछ समझ पाऊँ,
तुम फिर समंदर में खो जाती हो.
खुद को किसी तरह समझाकर
मैं अलगाव को स्वीकारता हूँ,
पर मेरी भावनाओं से खेलने
तुम फिर चली आती हो.
लहरों, मुझे बख्श दो,
भ्रमित मत करो मुझे,
मैं खेल का सामान नहीं हूँ,
स्थिर हूँ,स्थिरता चाहता हूँ.
तय करो कि तुम्हें क्या करना है,
अगर आना है तो आ जाओ,
अगर आकर चले जाना है,
तो बेहतर है कि मुझे अकेला छोड़ दो.
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : बदलता तकनीक और हम
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंलहरें और स्थिरता -असंभव : लहरों के बीच खड़ा रहने के लिए स्वयं की मज़बूती अपेक्षित है!
जवाब देंहटाएंबढ़िया व सुंदर रचना , ओंकार सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअगर संभव हो तो -
Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
~ I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ ~ ( ब्लॉग पोस्ट्स चर्चाकार )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbhawpurn khubsurat rachna
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 25 . 8 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंकहाँ संभव होता है लहरों में स्थिरता पाना? बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति लहरें और जल और भंवर सब एक ही हैं पृथक मेरा मन है। पर मैं मन नहीं हूँ। मन भौतिक ऊर्जा मटीरियल एनर्जी का बना है मैं हूँ डिवाइन एनर्जी का एक क्वांटम
जवाब देंहटाएंवाआह्ह्ह ओंकार जी वाह बहुत सुन्दर कृति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब । सुन्दर है ।।
जवाब देंहटाएंमनोभावों को सुन्दरता से प्रस्तुत किया1
जवाब देंहटाएं