मैं तुम्हारे जूड़े में खोंसा गया
एक बेबस फूल हूँ.
लगातार तुम्हारे साथ हूँ,
पर न तुम मुझे,
न मैं तुम्हें देख सकता हूँ.
डाल से अलग हूँ,
एक दिन का मेहमान हूँ,
कल मैं कुम्हला जाऊँगा,
तुम्हारे लायक नहीं रहूँगा.
तुम मुझे खींचकर
अपने जूड़े से निकालोगी,
किसी गंदे कूड़ेदान में
या ज़मीन पर फेंक दोगी.
मैं तुमसे नहीं कहूँगा
कि मुझे जूड़े में रहने दो,
ऐसा कहना अन्याय होगा,
कहूँगा भी तो तुम मानोगी नहीं.
अब एक ही ख्वाहिश है मेरी
कि मिट्टी में मिलने से पहले
बस एक बार, सिर्फ़ एक बार
मैं तुम्हारी नज़रों के सामने रहूँ.
एक बेबस फूल हूँ.
लगातार तुम्हारे साथ हूँ,
पर न तुम मुझे,
न मैं तुम्हें देख सकता हूँ.
डाल से अलग हूँ,
एक दिन का मेहमान हूँ,
कल मैं कुम्हला जाऊँगा,
तुम्हारे लायक नहीं रहूँगा.
तुम मुझे खींचकर
अपने जूड़े से निकालोगी,
किसी गंदे कूड़ेदान में
या ज़मीन पर फेंक दोगी.
मैं तुमसे नहीं कहूँगा
कि मुझे जूड़े में रहने दो,
ऐसा कहना अन्याय होगा,
कहूँगा भी तो तुम मानोगी नहीं.
अब एक ही ख्वाहिश है मेरी
कि मिट्टी में मिलने से पहले
बस एक बार, सिर्फ़ एक बार
मैं तुम्हारी नज़रों के सामने रहूँ.
सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 21/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सावन और झूलनोत्सव
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 20/07/2014 को "नव प्रभात" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1680 पर.
जवाब देंहटाएंबढ़िया ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्द और भावप्रणव।
जवाब देंहटाएंअखबार और फूल का ये हश्र तो होना ही है...
जवाब देंहटाएंदाल से टूटने के बाद फूलों की ख्वाहिशें कहाँ पूरी होती हैं ...
जवाब देंहटाएंएक दिन का मेहमान हूँ,
जवाब देंहटाएंकल मैं कुम्हला जाऊँगा,
तुम्हारे लायक नहीं रहूँगा.
बढ़िया ।
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंbehtareen
जवाब देंहटाएंbehtareen
जवाब देंहटाएंवाह ....बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत
जवाब देंहटाएंऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति..
सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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