तुम्हारे हाव-भाव,
तौर-तरीके,चाल-ढाल,
मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,
मैं आँखें बंद करके सोचूँ,
तो कुछ भी ऐसा नहीं दिखता,
जो मैं तुममें पसंद कर सकूं,
पर न जाने क्यों,
तुम्हारा दुःख मुझसे
सहा नहीं जाता,
तुम्हारी थोड़ी-सी तकलीफ़
मुझे बेचैन कर देती है,
न जाने क्यों
मुझे हर वक्त
तुम्हारा ख्याल रहता है.
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
काश, मैं तुम्हें प्यार नहीं करता,
जैसे कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता.
तौर-तरीके,चाल-ढाल,
मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,
मैं आँखें बंद करके सोचूँ,
तो कुछ भी ऐसा नहीं दिखता,
जो मैं तुममें पसंद कर सकूं,
पर न जाने क्यों,
तुम्हारा दुःख मुझसे
सहा नहीं जाता,
तुम्हारी थोड़ी-सी तकलीफ़
मुझे बेचैन कर देती है,
न जाने क्यों
मुझे हर वक्त
तुम्हारा ख्याल रहता है.
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
काश, मैं तुम्हें प्यार नहीं करता,
जैसे कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता.
आपकी लिखी रचना बुधवार 10 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंmn ke bhawon ki sundar prastuti ......
जवाब देंहटाएंविचित्र विरोधाभास !
जवाब देंहटाएंजन्नत में जल प्रलय !
वाह .... अनुपम भाव
जवाब देंहटाएंप्रेम और पसंद अलग अलग ... तभी तो ये काश की दिवार है बीच में ...
जवाब देंहटाएंप्यार और विरोधाभास दोनों एक जगह ... कमाल है .... है ना :)
जवाब देंहटाएंस्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर रंगरूट
अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें
आभार।
सुन्दर चित्र तादात्म्य और द्व्न्द्व का।
जवाब देंहटाएंBahut sunder
जवाब देंहटाएं