top hindi blogs

रविवार, 25 मई 2014

१२७. आह्वान




बूंदों, आओ, बरस जाओ,
दूर कर दो ताप धरती का,
प्यासों की प्यास बुझा दो.

हर गांव, हर शहर,
हर जाति, हर धर्म,
स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े -
सब पर बरस जाओ.

गरीब की कुटिया पर बरसो,
धनी के महल पर भी,
खेत-खलिहान पर बरसो,
सूखे रेगिस्तान पर भी,
भूखों-नंगों पर बरसो,
संपन्न और तृप्त पर भी.

मेरे पड़ोसी पर बरसो,
थोड़ा-सा मुझ पर भी.

बूंदों, आज ऐसे बरसो 
कि कोई बाकी न रहे,
कोई न कह सके 
कि उसके साथ 
आज फिर भेदभाव हुआ.

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये हुई कुछ बात...सबके लिए मंगलकामना आजकल कौन करता है...सुन्दर पोस्ट...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (29-06-2014) को ''अभिव्यक्ति आप की'' ''बातें मेरे मन की'' (चर्चा मंच 1659) पर भी होगी
    --
    आप ज़रूर इस चर्चा पे नज़र डालें
    सादर

    जवाब देंहटाएं