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मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

१०६. मरम्मत

क्या तुम्हें पता है,
हमारे रिश्ते का पलस्तर 
थोड़ा-थोड़ा झड़ने लगा है,
दीवार की इक्का-दुक्का ईंट 
ज़रा-ज़रा हिलने लगी है,
फीकी पड़ने लगी है
रंगों की चमक,
एकाध टाइल कहीं-कहीं 
चटखने लगी है,
फ़र्श कहीं-कहीं धंसने लगा है,
ज़मीन कहीं-कहीं झलकने लगी है.

चलो, अब चेत जांय,
ज़रा-सा डर जांय,
टूट-फूट का आकलन कर लें,
कहीं देर न हो जाय.

इतना तो मैं जानता हूँ, 
तुम्हें भी तो पता है 
कि रिश्ते और इमारत की मरम्मत 
जितनी जल्दी हो जाय, 
उतना अच्छा है.

10 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तों की मरम्मत प्रेम के एहसास को फिर से जगाने से होगी ...
    अच्छी रचना ...

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  2. कल 05/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति-
    शुभकामनायें आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  4. रिश्ते और इमारत की मरम्मत
    जितनी जल्दी हो जाय,
    उतना अच्छा है.

    बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना ....!
    ==================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 07/12/2013 को चलो मिलते हैं वहाँ .......( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 054)
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  6. समय रहते रिश्तों की इमारत की मरम्मत ज़रूरी है...बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..

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