मैंने देखा,
सड़क पर कुछ गुंडे
छेड़ रहे थे एक बच्ची को,
रो रही थी वह,
मदद मांग रही थी मुझसे,
पर मैं चुप था,
बहुत डरा हुआ था,
हँस रहे थे गुंडे,
बेबस थी वह बच्ची.
डाल पर बैठा एक कौवा
सब कुछ देख रहा था,
चिल्ला रहा था गला फाड़कर,
किए जा रहा था काँव-काँव,
पर बेबस था वह भी.
अंत में थक गया वह,
उसने मेरी ओर देखा,
बीट की मुझपर
और फुर्र से उड़ गया.
सड़क पर कुछ गुंडे
छेड़ रहे थे एक बच्ची को,
रो रही थी वह,
मदद मांग रही थी मुझसे,
पर मैं चुप था,
बहुत डरा हुआ था,
हँस रहे थे गुंडे,
बेबस थी वह बच्ची.
डाल पर बैठा एक कौवा
सब कुछ देख रहा था,
चिल्ला रहा था गला फाड़कर,
किए जा रहा था काँव-काँव,
पर बेबस था वह भी.
अंत में थक गया वह,
उसने मेरी ओर देखा,
बीट की मुझपर
और फुर्र से उड़ गया.
भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
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RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
अर्थ पूर्ण ... निःशब्द हूँ .. स्तब्ध हूँ ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...
कड़वा सच... अर्थपूर्ण रचना के लिए शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंयह कविता बहुत अच्छी लगी। इसका व्यंग्य मारक है।..बधाई।
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