कल एक कविता ख्यालों में आई,
मैं पकड़ पाता हाथ बढ़ाकर
इससे पहले गायब हो गई.
बहुत परेशान हूँ मैं,
कैसे रपट लिखाऊं,
कैसे इश्तेहार छपवाऊँ,
गुमशुदा अपनी कविता को
कैसे लौटाकर लाऊँ?
कोई शक्ल-सूरत हो
तो उसे खोजा भी जाए,
जो कागज़ पर उतरने से पहले ही
गायब हो गई हो,
उस कविता को कैसे ढूँढा जाए?
मैं पकड़ पाता हाथ बढ़ाकर
इससे पहले गायब हो गई.
बहुत परेशान हूँ मैं,
कैसे रपट लिखाऊं,
कैसे इश्तेहार छपवाऊँ,
गुमशुदा अपनी कविता को
कैसे लौटाकर लाऊँ?
कोई शक्ल-सूरत हो
तो उसे खोजा भी जाए,
जो कागज़ पर उतरने से पहले ही
गायब हो गई हो,
उस कविता को कैसे ढूँढा जाए?
yah ak hakikat hai,sochte- sochte aur kalm dhoodhte-dhoodhnte kabhi kabhi kavitaye gayab ho jati hai,sundar aur satik prastuti
जवाब देंहटाएंजी! होता अक्सर यही है
जवाब देंहटाएंजब ख़यालों मे होती है कविता,तब समय नही और जब कागज पर उतारने का समय मिलता है तब तक गायब.
सटीक अभिव्यक्ति!
रपट की एक कापी हमें भी भेज दीजिएगा। हमे भी रपट लिखानी है बहुत सी..
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसा हो जाता है,,,सुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST... नवगीत,
अपने ह्रदय में खोजिये....
जवाब देंहटाएंवहीं तो छुपी है....
सादर
अनु
सच में कविता यदि खो जाए तो किस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराएं |उम्दा कविता |
जवाब देंहटाएंआशा
मन की आँखें खोलके वो एहसास फिर से जाग जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंsach hai kavita jab hath chhod chali jati hai mushkil se hi vapas aati hai..
जवाब देंहटाएंkoshish karte rahiye sundar abhivyakti..
achha likha hai..hota hai aksar.... kho jati hain panktiyan...bhaav
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen