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शनिवार, 5 जनवरी 2013

६३. मैं क्या हूँ?

मैं क्या हूँ ?
आकाश में भटकता बादल,
जो गरजे न बरसे,
जिसे उड़ाती रहें हवाएं,
इधर से उधर...

नहीं,मैं वो नहीं हूँ,
बादल तो देता हैं छांव,
मैं क्या देता हूँ?

क्या मैं पानी का बुलबुला हूँ?
नहीं, वह भी लगता है सुन्दर
धीरे-धीरे सतह पर तैरते.

क्या मैं हवा का गुब्बारा हूँ?
नहीं, गुब्बारे से खेलकर
खुश होते हैं बच्चे,
भाता है उसका इधर-उधर उड़ना.

न मैं बादल हूँ,
न बुलबुला,न गुब्बारा,
मैं ऐसा कुछ हूँ,
जिसका अस्तित्व तो है,
पर क्यों है,पता नहीं.

13 टिप्‍पणियां:

  1. सही है.. वजूद टटोटले बीत जाती है जिंदगी।

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  2. स्वाभाविक है ऐसे सवालों का उठना...
    मगर हर व्यक्ति की कोई न कोई जगह, कोई न कोई सार्थकता होती अवश्य है...
    सहज भावाव्यक्ति..

    सादर
    अनु

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  3. मैं ऐसा कुछ हूँ,
    जिसका अस्तित्व तो है,
    पर क्यों है,पता नहीं.

    ...बहुत सार्थक प्रश्न...सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  4. सशक्त और प्रभावशाली रचना...

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  5. दिनांक 07/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. अस्तित्व का पता लगाने की इतनी ललक ही उसको पा लेने का एक मात्र रास्ता है, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. vzud ki talash me bhatakti sundar prastuti,.....new posts...betiyan

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  8. यह सब चीज़ें तो क्षण भंगुर हैं...आपका जन्म किसी और बड़ी ख़ुशी से जुड़ा है ...उसे पहचानिए...! सुन्दर अभिव्यक्ति

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  9. न मैं बादल हूँ,
    न बुलबुला,न गुब्बारा,
    मैं ऐसा कुछ हूँ,
    जिसका अस्तित्व तो है,
    पर क्यों है,पता नहीं.
    यह शाश्वत प्रश्न
    New post: अहंकार

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  10. अपने वजूद को तलाशता कवि ओर उसकी रचना ...
    बहुत खूब ...

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  11. खुद की खोज में लगा हुआ मन , उम्दा लिखा आप ने

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