मुझे पसंद नहीं दहलीज़,
जो तय कर देती है
मेरे घर की सीमा,
जता देती है कि अपना क्या है
और पराया क्या है,
बता देती है इस ओर का फ़र्क
उस ओर से.
क्यों न हटा दें ये संकेत,
जो पैदा करते हैं दुविधाएं,
रोकते हैं किसी को बाहर जाने
और किसी को अंदर आने से.
सभी अगर इंसान हैं
तो अपना-पराया कैसा,
घर-बाहर कैसा,
ये सीमाएं कैसी
और ये दह्लीज़ें किसलिए?
जो तय कर देती है
मेरे घर की सीमा,
जता देती है कि अपना क्या है
और पराया क्या है,
बता देती है इस ओर का फ़र्क
उस ओर से.
क्यों न हटा दें ये संकेत,
जो पैदा करते हैं दुविधाएं,
रोकते हैं किसी को बाहर जाने
और किसी को अंदर आने से.
सभी अगर इंसान हैं
तो अपना-पराया कैसा,
घर-बाहर कैसा,
ये सीमाएं कैसी
और ये दह्लीज़ें किसलिए?
मंगलवार 15/01/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
जवाब देंहटाएंआपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!
सभी अगर इंसान हैं
जवाब देंहटाएंतो अपना-पराया कैसा,
घर-बाहर कैसा,
ये सीमाएं कैसी
और ये दह्लीज़ें किसलिए,,,,उम्दा अभिव्यक्ति,,,ओंकार जी,,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
सभी अगर इंसान हैं
जवाब देंहटाएंतो अपना-पराया कैसा,
घर-बाहर कैसा,
ये सीमाएं कैसी
और ये दह्लीज़ें किसलिए?
.....घर और देश विभाजित हैं देहलीज़ और सीमाओं से...विचारोत्तेजक एवम बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसभी अगर इंसान हैं
जवाब देंहटाएंतो अपना-पराया कैसा,
घर-बाहर कैसा,
ये सीमाएं कैसी
और ये दह्लीज़ें किसलिए?
..शायद इसलिए क्यूंकि इंसान अपनी फितरत से बाज नहीं आता ..
बहुत बढ़िया रचना ..