कान्हा, कब से खामोश है तुम्हारी बांसुरी,
कोई मीठी तान छेड़ो ना,
वन-उपवन,नदी-तालाब छोड़ो,
अब बस्तियों में आओ ना.
इंतज़ार में हैं लाखों देवियाँ,
जिनके कानों को झिड़कियों की
आदत सी पड़ गई है,
तिरस्कृत,उपेक्षित,अपमानित-
उनके कानों में थोड़ा शहद घोलो ना.
कान्हा, एक ऐसी तान छेड़ो
कि जाग उठे उनकी जीजिविषा,
अंगड़ाई ले उनमें कोई आशा,
कि खून खौल उठे उनका.
एक तान जो फूँक दे उनमें नई जान,
जगा दे उनका आत्म-सम्मान,
भगा दे सारा डर, सारी दुविधा,
करा दे उनकी खुद से पहचान.
बहुत देर हो गई कान्हा,
अब बस दौड़े चले आओ,
रख लो अपने होठों पर मुरली
और छेड़ दो एक ऐसी तान
कि सब-की-सब लांघ जायं देहरी,
कि सब-की-सब राधा बन जायं.
कोई मीठी तान छेड़ो ना,
वन-उपवन,नदी-तालाब छोड़ो,
अब बस्तियों में आओ ना.
इंतज़ार में हैं लाखों देवियाँ,
जिनके कानों को झिड़कियों की
आदत सी पड़ गई है,
तिरस्कृत,उपेक्षित,अपमानित-
उनके कानों में थोड़ा शहद घोलो ना.
कान्हा, एक ऐसी तान छेड़ो
कि जाग उठे उनकी जीजिविषा,
अंगड़ाई ले उनमें कोई आशा,
कि खून खौल उठे उनका.
एक तान जो फूँक दे उनमें नई जान,
जगा दे उनका आत्म-सम्मान,
भगा दे सारा डर, सारी दुविधा,
करा दे उनकी खुद से पहचान.
बहुत देर हो गई कान्हा,
अब बस दौड़े चले आओ,
रख लो अपने होठों पर मुरली
और छेड़ दो एक ऐसी तान
कि सब-की-सब लांघ जायं देहरी,
कि सब-की-सब राधा बन जायं.
बहुत खूबसूरत ख़्वाहिश
जवाब देंहटाएंआज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
वाह...
जवाब देंहटाएंकि सब-की-सब लांघ जायं देहरी,
कि सब-की-सब राधा बन जायं.......
बहुत सुन्दर..
अनु
सुंदर मनुहार कान्हें से ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कृष्णमयी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंआभार!
वाह,,,बहुत ही मनमोहक मनुहार,,,कान्हा से,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : समय की पुकार है,
बहुत भावपूर्ण रचना...
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