अरे निगोड़े डाकिए,
आजकल तुम देर से क्यों आते हो?
क्या घोड़े बेचकर सोते रहते हो
या अफीम खाकर पड़े रहते हो?
तुम्हारी साईकिल धीरे क्यों चलती है,
क्या टायरों में हवा कम हो गई है?
नुक्कड़ पर आते ही बीड़ी क्यों सुलगाते हो,
घर से फूंककर क्यों नहीं आते?
घर से फूंककर क्यों नहीं आते?
थैला भर चिट्ठियाँ लाते हो,
एक मुझे देने में जान क्यों निकलती है?
क्यों तुम्हें ख्याल नहीं आता
कि सुबह से कोई तुम्हारे इंतज़ार में है?
कहीं-न-कहीं कुछ-न-कुछ तो गड़बड़ है,
मैं डाकबाबू से शिकायत करूंगी,
तुमसे अच्छा तो वो पुराना डाकिया था,
जो कभी-कभार उनका खत तो लाता था.
वाह ... बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंBahut khoob! aise ulaahne par to daakiya hi likhde ek patra.
जवाब देंहटाएंविरहिन का दर्द का जाने डाकिया!
जवाब देंहटाएंसच इंतज़ार की घड़ियाँ बहुत कठिन होती हैं...सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआज कल सब नेट पर स्टेटस डालते हैं .... चिट्ठी कहाँ कौन लिखता है .... अब बेचारा डाकिया क्या करे ?
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