चिड़िया, बहुत अच्छा लगता है
सुबह-सुबह मेरी खिड़की पर
तुम्हारा ज़ोर-ज़ोर से,
अधिकार से चहचहाना.
मैं आँखें बंद करके
महसूस करता हूँ तुम्हारी आवाज़,
फिर निहारता हूँ तुम्हें
जब तक तुम फुर्र नहीं हो जाती.
चिड़िया, तुम खूब खिड़की पर आया करो,
खूब चहचहाया करो,
यहाँ तक कि रातों को भी,
नींद उड़ा दो मेरी
ताकि चैन आ जाय मुझे.
ईंट-पत्थर के इस जंगल में
कहाँ दिखती हो तुम,
दिखती भी हो तो गुमसुम,
चिड़िया,आजकल तुम्हारी आवाज़
सुनाई कहाँ पड़ती है ?
सुबह-सुबह मेरी खिड़की पर
तुम्हारा ज़ोर-ज़ोर से,
अधिकार से चहचहाना.
मैं आँखें बंद करके
महसूस करता हूँ तुम्हारी आवाज़,
फिर निहारता हूँ तुम्हें
जब तक तुम फुर्र नहीं हो जाती.
चिड़िया, तुम खूब खिड़की पर आया करो,
खूब चहचहाया करो,
यहाँ तक कि रातों को भी,
नींद उड़ा दो मेरी
ताकि चैन आ जाय मुझे.
ईंट-पत्थर के इस जंगल में
कहाँ दिखती हो तुम,
दिखती भी हो तो गुमसुम,
चिड़िया,आजकल तुम्हारी आवाज़
सुनाई कहाँ पड़ती है ?
शहरों की यह बेरुखी, दिन प्रतिदिन गंभीर ।
जवाब देंहटाएंजीव-जंतु की क्या कहें, दे मानव को पीर ।
दे मानव को पीर, किन्तु शहरों से गायब ।
बस्ती रही मशीन, बना यह शहर अजायब ।
कंक्रीट को पीट, सीट अधिसंख्य बनाई ।
एक अदद भी नहीं, कहीं से चिड़िया आई ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंab to main tumhe bas dhoondhta hun
जवाब देंहटाएंसच में आज उसका आस्तिव ही खो गया है जो थोड़ी २ देर में हमारे आगं में फुदकती रहती थी रचना अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंअब तो कंक्रीट के जंगल में अपनी आवाज़ भी ढूंढनी पडती है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंप्रकृति से प्रेम कराना सिखाती है यह कविता।
जवाब देंहटाएंजब कभी
कंकरीट के जंगल से
उकता कर भागता हूँ
खुद को
हरे भरे वृक्षों के बीच पाता हूँ
दृढ़ होता है विश्वास
मरी नहीं है चिड़िया
गिद्ध की तरह
हमी हो चुके हैं
पथरीले।
आयेगी
आ सकती है
चहक सकती है फिर से
मेरे आँगन में
चिड़िया
बस हमे
होना है थोड़ा
हरा-भरा
रखना है
एक कटोरा पानी
और थोड़े से दाने
अपनी भूख से
बचाकर।
उसके हिस्से का दाना पानी और पेड़ हमीं खा गए...क्या करे बेचारी....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना.
सादर
अनु
सार्थक रचना ...
जवाब देंहटाएंअब चिड़ियों का दिखना कम हो गया है...
bahut acchi chahat ......
जवाब देंहटाएंप्रकृति से आत्मसात कराती रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
ईंट-पत्थर के इस जंगल में
जवाब देंहटाएंकहाँ दिखती हो तुम,
दिखती भी हो तो गुमसुम,
चिड़िया,आजकल तुम्हारी आवाज़
सुनाई कहाँ पड़ती है ?
..सच ईंट पत्थरों के बीच चिड़िया की आवाज दबती जा रही है ...
बहत बढ़िया प्रस्तुति ...
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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