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शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

४७९. अनुभूति

silhouette of trees near mountain during sunset

आज कहीं नहीं जाना,

तो ऐसा करो,

अपने अन्दर उतरो,

गहरे तक उतरो.


तुम हैरान रह जाओगे,

वहां तुम्हें जाले मिलेंगे,

गन्दगी मिलेगी,

फैली हुई मिलेगी 

सड़ांध हर कोने में.


अपने अन्दर उतरोगे,

तो तुम्हें वह सब मिलेगा,

जो तुम हमेशा सोचते थे 

कि तुम्हारे अन्दर नहीं,

कहीं बाहर है.

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-09-2020) को    "सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों"   (चर्चा अंक-3823)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 12 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. अपने भीतर की यात्रा करवाती रचना...क्या खूब ल‍िखा है ओंकार जी

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  4. आत्मदर्शन का बोध
    बहुत सुंदर

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  5. अपने अन्दर उतरोगे,

    तो तुम्हें वह सब मिलेगा,
    जो तुम हमेशा सोचते थे
    कि तुम्हारे अन्दर नहीं,
    कहीं बाहर है.

    -सत्य कथन ... लेकिन परबचन भर ... सबके वश की बात नहीं..

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  6. अपने अन्दर उतरोगे,

    तो तुम्हें वह सब मिलेगा,

    जो तुम हमेशा सोचते थे

    कि तुम्हारे अन्दर नहीं,

    कहीं बाहर है.,,,, बहुत सुंदर अत्म दर्शन कराती रचना ।

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  7. आप वास्तव में तारीफ़ के पात्र हो. धन्यवाद

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