चींटियाँ कहीं भी,
किसी के भी
पांवों तले दब जाती हैं,
इतनी छोटी होती हैं वे
कि दिखाई ही नहीं पड़तीं.
वे आगाह भी करती हैं ,
तो किसी को पता नहीं चलता,
उनकी चीख़ें नहीं पहुँचती
कुचलनेवालों के कानों तक.
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता
चींटियों के मर जाने से,
पर चींटियों का जन्म हुआ है,
तो उन्हें जीने का हक़ है,
जीने के लिए लड़ने का हक़ है.
अगर चींटियों को जीना है,
तो उन्हें बनाना होगा अलग रास्ता,
ऊंची करनी होगी आवाज़
और काट खाना होगा उन पांवों को,
जिनके नीचे दबकर वे दम तोड़ देती हैं.
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर! हर प्राणी को जीने का हक है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
iwillrocknow.com
वाह! जीने के अधिकार के लिए चीखती रचना !
जवाब देंहटाएंसच है ... पर बड़े लोग ऐसा कहाँ होने देते हैं ...
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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