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शुक्रवार, 8 मार्च 2019

३४९. पैसेंजर ट्रेन


मैं पैसेंजर ट्रेन हूँ,
हर गाँव, हर कस्बे से 
मुझे प्यार है.

ठहर जाती  हूँ मैं 
हर छोटे बड़े स्टेशन पर,
हालचाल पूछती  हूँ,
फिर आगे बढ़ती  हूँ.

लोग जल्दी में हैं,
बिना वक़्त गँवाए 
मंज़िल पा लेना चाहते हैं.

उन्हें मैं नहीं,
एक्सप्रेस गाड़ी पसंद है,
जो गाँवों-कस्बों से दुआ-सलाम में 
बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं करती।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-03-2019) को "पैसेंजर रेल गाड़ी" (चर्चा अंक-3269) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर ! इस गतिमान जगत में लोगों के पास वक्त की इतनी कमी है कि लोग अपनी जड़ें भूल आसमान में उड़ना चाहते हैं ! यही हाल जीवन में शायद रिश्तों का भी हो गया है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  3. समय की रफ़्तार में जीवन नहीं ... समय जीने में जीवन है ...
    सुन्दर भाव पूर्ण ...

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को शुभकामनायें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  5. आज की भागती ज़िंदगी पर सटीक कटाक्ष...बहुत सुन्दर

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  6. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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