ब्रह्मपुत्र,
बहुत दिनों बाद मिला हूँ तुमसे,
कुछ सूख से गए हो तुम,
कुछ उदास से लगते हो,
कौन सा ग़म है तुम्हें,
किस बात से परेशान हो?
अब पहले जैसे गरजते नहीं तुम,
चुपचाप बहे चले जाते हो,
तट पर बसे लोगों से उदासीन,
जैसे नाराज़ हो उनसे।
ब्रह्मपुत्र,
बहुत ग़लतियाँ हुई हैं हमसे,
पर हम तुम्हारी ही संतान हैं,
चाहो तो डुबा दो हमें,
पर पहले की तरह ठठाकर बहो,
हमसे यूँ मुंह न मोड़ो।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-03-2019) को "वीर अभिनन्दन ! हार्दिक अभिनन्दन" (चर्चा अंक-3263) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद सुंदर.... रचना ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारत कोकिला सरोजिनी नायडू और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सारगर्भित प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंनदियों की परिशानी को बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शुक्रवार 19 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
जवाब देंहटाएं