मुझे रेलगाड़ी अच्छी लगती है,
दौड़ती चली जाती है
दो पटरियों पर लगातार,
जैसे ध्यान-मग्न हो.
दिखाती चलती है
धरती के अलग-अलग रंग,
मिलाती है अजनबियों से,
रुक जाती है प्लेटफ़ॉर्म पर
सब के लिए बाहें फैलाए.
वैसे तो हवाई जहाज
बड़ी जल्दी पहुंचा देता है
अपनी मंज़िल पर,
मगर उसमें यात्रा का
वह आनंद कहाँ,
जो रेलगाड़ी में है.
मुझे हवाई जहाज
इसलिए भी पसंद नहीं
कि वह हवा में उड़ता है
और मुझे अच्छा लगता है
ज़मीन से जुड़े रहना.
सुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंठीक हो न जाएँ
मुझे भी हवाई जहाज में मजा नहीं आता है । बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-01-2019) को "पहन पीत परिधान" (चर्चा अंक-3223) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 20/01/2019 की बुलेटिन, " भारत के 'जेम्स बॉन्ड' को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंरेलगाड़ियों की बात ही कुछ अलग है ..., बहुत सुन्दर रचना ।
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