एक चिड़िया
उड़ते हुए आई,
चहचहाने लगी
पेड़ की डाल पर।
बूढ़ा पेड़ हर्षाया,
बहुत दिनों बाद
दूर हुआ उसका
एकाकीपन।
बस थोड़ी देर और,
फिर उड़ जाएगी चिड़िया,
उसका घोंसला कहीं और है,
पर पेड़ ख़ुश है,
थोड़े समय के लिए ही सही,
चिड़िया उसके पास आई तो.
बूढ़े पेड़ पर पत्ते न सही,
उसकी उम्मीदें हरी हैं,
शायद फिर एकाध बार
आ जाय कोई चिड़िया,
बैठ जाय उसकी डाली पर,
शायद एकाध बार फिर
सुनाई पड़ जाय उसे
चिड़ियों की चहचहाट
मरने से पहले।
उड़ते हुए आई,
चहचहाने लगी
पेड़ की डाल पर।
बूढ़ा पेड़ हर्षाया,
बहुत दिनों बाद
दूर हुआ उसका
एकाकीपन।
बस थोड़ी देर और,
फिर उड़ जाएगी चिड़िया,
उसका घोंसला कहीं और है,
पर पेड़ ख़ुश है,
थोड़े समय के लिए ही सही,
चिड़िया उसके पास आई तो.
बूढ़े पेड़ पर पत्ते न सही,
उसकी उम्मीदें हरी हैं,
शायद फिर एकाध बार
आ जाय कोई चिड़िया,
बैठ जाय उसकी डाली पर,
शायद एकाध बार फिर
सुनाई पड़ जाय उसे
चिड़ियों की चहचहाट
मरने से पहले।
वाह लाज़वाब ..
जवाब देंहटाएंवाह!!लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-01-2019) को "कांग्रेस के इम्तिहान का साल" (चर्चा अंक-3208) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/01/2019 की बुलेटिन, " टाइगर पटौदी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी और अत्यंत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंवाह! दार्शनिक पाग में रची सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबूढ़े पेड़ या सच कहो तो उन्सान की भी अभ्लाषा यही तो है ...
जवाब देंहटाएंगहरी रहना ...
बहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर
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