ज़रा-सी देर में मैंने
लिख डाली एक कविता,
फिर सालों-साल निकलते रहे
उसके कई-कई अर्थ.
जैसे एक नहीं,
कई कविताएं लिख दी हों मैंने,
फिर सौंप दिया हो उन्हें
अनगिनत पाठकों को.
जो कविता लिखी थी मैंने,
छोड़ गई मुझको,
मुझसे बिछड़कर जैसे
हवा में बिखर गई.
अब मैं लिखूंगा
एक और कविता,
संभालकर रखूँगा उसे,
वह सिर्फ़ मेरी होगी
और उसका अर्थ भी
सिर्फ़ मेरा होगा.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-01-2019) को "उत्तरायणी-लोहड़ी" (चर्चा अंक-3215) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
उत्तरायणी-लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन लेखन हेतु शुभकामनाएं आदरणीय ओंकार जी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसब के साथ साझा होने पे ऐसा होता है ... स्वाभाविक है ...
अच्छी रचना ...
अपने हाथ से निकलने पर अपना अर्थ कब अपना रहता है. अपनी सोच के अनुसार वे उसका अर्थ निकालेंगे ही... बहुत सुन्दर रचना..
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