कल रात बहुत बारिश हुई,
धुल गया ज़र्रा-ज़र्रा,
चमक उठा पत्ता-पत्ता,
बह गई राह की धूल,
निखर गई हर चीज़,
पर अँधेरा पहले-सा ही रहा,
छू भी नहीं पाई उसे
बारिश की बूँदें.
जब बारिश थमी,
तो अँधेरा उतना ही घना था,
उसे भिगोना संभव नहीं था,
उसे भगाना ज़रूरी था,
उससे निपटने के लिए
बारिश की नहीं,
सूरज की ज़रूरत थी.
धुल गया ज़र्रा-ज़र्रा,
चमक उठा पत्ता-पत्ता,
बह गई राह की धूल,
निखर गई हर चीज़,
पर अँधेरा पहले-सा ही रहा,
छू भी नहीं पाई उसे
बारिश की बूँदें.
जब बारिश थमी,
तो अँधेरा उतना ही घना था,
उसे भिगोना संभव नहीं था,
उसे भगाना ज़रूरी था,
उससे निपटने के लिए
बारिश की नहीं,
सूरज की ज़रूरत थी.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-04-2018) को ) "कर्म हुए बाधित्य" (चर्चा अंक-2942) पर होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Sundar Rachana Prastuti ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
क्या बात !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब .।।
जवाब देंहटाएंसूरज की तलाश जीवन है ...
बेहतरीन वैचारिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ...
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