वह आदमी,
जिससे मैं सुबह मिला था,
कमाल का इंसान था,
बड़ा दयावान,
बड़ा संवेदनशील,
किसी का बुरा न करनेवाला,
किसी का बुरा न चाहनेवाला,
सब की खुशी में खुश,
सबके दुख में दुखी.
वही आदमी जब शाम को मिला,
तो बदला हुआ था,
निहायत घटिया किस्म का,
दूसरों के दर्द से बेपरवाह,
स्वार्थी, संवेदनहीन,
पीठ में छुरा भोंकनेवाला।
मैं सोचता हूँ,
सुबह का इंसान
शाम तक अमानुष कैसे बन जाता है,
सचमुच आसान नहीं होता
इन्सानों को समझना.
जिससे मैं सुबह मिला था,
कमाल का इंसान था,
बड़ा दयावान,
बड़ा संवेदनशील,
किसी का बुरा न करनेवाला,
किसी का बुरा न चाहनेवाला,
सब की खुशी में खुश,
सबके दुख में दुखी.
वही आदमी जब शाम को मिला,
तो बदला हुआ था,
निहायत घटिया किस्म का,
दूसरों के दर्द से बेपरवाह,
स्वार्थी, संवेदनहीन,
पीठ में छुरा भोंकनेवाला।
मैं सोचता हूँ,
सुबह का इंसान
शाम तक अमानुष कैसे बन जाता है,
सचमुच आसान नहीं होता
इन्सानों को समझना.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-04-2017) को "यह समुद्र नहीं, शारदा सागर है" (चर्चा अंक-2954) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
सही कहा है,विषम सामाजिक परिस्थितियाँ इंसान के नैतिक मूल्यों का कत्ल कर देती हैं। बहुत ही कम बचते हैं जो अपने मूल्यों पर कायम रह पाते हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहर चहरे पर कितने चहरे लगे रहते हैं
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई है ये।
बहुत अच्छी रचना
बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंतभी तो वो इंसान है ... वर्ना गिरगिट का भी पता चल जाता है जब वो रंग बदलती है ... पर इंसान ...
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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