बड़े स्वार्थी होते हैं लोग,
अपना काम हो,
तो गधे को भी
बाप बना लेते हैं,
काम निकल जाने के बाद
दूध से मक्खी की तरह
निकाल फेंकते हैं
किसी को भी.
एहसानफ़रमोश होते हैं लोग,
धोखेबाज़ भी,
ज़रूरत पड़े,
तो किसी की भी पीठ में
छुरा भोंक सकते हैं.
दोगले होते हैं लोग,
अपने लिए उनके नियम अलग
और दूसरों के लिए अलग होते हैं,
अंदर से वे वैसे नहीं होते,
जैसे बाहर से दिखते हैं,
वे कहते कुछ और हैं,
सोचते कुछ और हैं.
मुझे पूरा यक़ीन है
कि जो मैंने कहा है,
बिल्कुल सही है,
क्योंकि मैं ख़ुद भी
ऐसा ही हूँ.
अपना काम हो,
तो गधे को भी
बाप बना लेते हैं,
काम निकल जाने के बाद
दूध से मक्खी की तरह
निकाल फेंकते हैं
किसी को भी.
एहसानफ़रमोश होते हैं लोग,
धोखेबाज़ भी,
ज़रूरत पड़े,
तो किसी की भी पीठ में
छुरा भोंक सकते हैं.
दोगले होते हैं लोग,
अपने लिए उनके नियम अलग
और दूसरों के लिए अलग होते हैं,
अंदर से वे वैसे नहीं होते,
जैसे बाहर से दिखते हैं,
वे कहते कुछ और हैं,
सोचते कुछ और हैं.
मुझे पूरा यक़ीन है
कि जो मैंने कहा है,
बिल्कुल सही है,
क्योंकि मैं ख़ुद भी
ऐसा ही हूँ.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-05-2018) को "उच्चारण ही बनेंगे अब वेदों की ऋचाएँ" (चर्चा अंक-2962) (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसच है। सुन्दर
जवाब देंहटाएंआप बड़े ईमानदार आदमी जान पड़ते हो...
जवाब देंहटाएंसारी बातें पढ़ी पढाई सी और सीखी सिखाई सी लगती है.
खुद को इन्सान औरो से ज्यादा और शत - प्रतिशत सही जानता है | -
जवाब देंहटाएंमुझे पूरा यक़ीन है
कि जो मैंने कहा है,
बिल्कुल सही है,
क्योंकि मैं ख़ुद भी
ऐसा ही हूँ.--
खुद के आधार पर दूसरों को परखना यद्यपि सही नहीं पर ये भी एक कडवा सच है
जिबान का ,कि जैसा इंसान खुद होता है दूसरों को वैसा ही समझ लेता है | सादर
जी सारगर्भित पंक्तियाँ ओंकार जी। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर काव्यात्मक आत्म स्वीकारोक्ति जो यह साबित करती है कि इंसान का ज़मीर अभी भी जिंदा है !!! बधाई और आभार!!!
जवाब देंहटाएंनिमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
इंसान के दोगलेपन को बाखूबी समझा और लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंगहरा व्यंग ...
wah!!
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