तुम्हारे तीरों के प्रहार से
छिटक गई है मेरी ढाल,
पर अभी बची हुई हैं
मेरी हथेलियाँ,
जो होती रहेंगी छलनी,
रोकती रहेंगी तुम्हारे तीर.
जब नहीं रहेंगी हथेलियाँ,
तब भी बचा रहेगा मेरा सीना,
झेलता रहेगा तुम्हारे तीर.
जीते जी नहीं हरा पाएंगे
तुम्हारे ये तीर मुझे,
अगर सच में जीतना चाहते हो,
तो आजमाओ मुझ पर
कोई कोमल हथियार.
http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/04/blog-post.html
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-04-2017) को "उड़ता गर्द-गुबार" (चर्चा अंक-2929) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंप्रेम से जीतना आसान होगा ... सही कहा है संकेतों में ...
सुंदर रचना ...
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