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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

२७८. पेड़




क्यों काट रहे हो मुझे?

मैं जो चुपचाप खड़ा रहता हूँ 

अपनी जगह पर,
न सोता हूँ, न बैठता हूँ,
हिलता भी नहीं अपनी जगह से,
क्या दुश्मनी है तुम्हारी मुझसे?

मेरी डालियों पर बने 
घोंसलों को देखो,
जिनमें मासूम चूज़े छिपे बैठे हैं,
उन पंछियों को देखो,
जिनका मैं आसरा हूँ,
उन कीड़ों-मकोड़ों, 
उन जानवरों को देखो,
जो मेरे सहारे ज़िन्दा हैं,
क्या दुश्मनी है तुम्हारी उनसे?

मेरे कोमल पत्तों को देखो,
फूलों और फलों को देखो,
जो तुम्हारे काम आते हैं,
ज़हरीली हवा के बारे में सोचो,
जो मैं पी लेता हूँ,
ताज़ी हवा के बारे में सोचो,
जो मैं तुम्हें देता हूँ,
मेरी छाया को देखो,
जिसमें तुम सुस्ता लेते हो.

मुझे काटने से पहले 
कम-से-कम इतना ही बता दो 
कि तुम्हारी  ख़ुद से दुश्मनी क्या है?

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-09-2017) को
    "एक संदेश बच्चों के लिए" (चर्चा अंक 2737)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह!
    तुम्हारी ख़ुद से दुश्मनी क्या है?

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