मैं सोया हुआ हूँ,
पर साँसें चल रही हैं,
दिल धड़क रहा है,
रक्त शिराओं में बह रहा है.
मैं सोया हुआ हूँ,
पर ये सब जाग रहे हैं,
काम पर लगे हुए हैं,
ताकि मैं सो भी सकूं,
ज़िन्दा भी रह सकूं.
पर साँसें चल रही हैं,
दिल धड़क रहा है,
रक्त शिराओं में बह रहा है.
मैं सोया हुआ हूँ,
पर ये सब जाग रहे हैं,
काम पर लगे हुए हैं,
ताकि मैं सो भी सकूं,
ज़िन्दा भी रह सकूं.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-09-2017) को
जवाब देंहटाएं"चलना कभी न वक्र" (चर्चा अंक 2730)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
जवाब देंहटाएंप्राकृति तो करती है अपना काम ... जब हम जागते भी हैं तो भी जी चुराते हैं बस अपने के लिए काम करते हैं ...
जवाब देंहटाएंumda
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
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