२७३. अस्तित्व
रेलगाड़ी की दो पटरियां
एक दूसरे का साथ देती
चलती चली जाती हैं
एक ही मंजिल की ओर.
सर्दी-गर्मी,धूप-बरसात
सब साथ-साथ सहती हैं,
फिर भी बनाए रखती हैं
अपना अलग अस्तित्व.
रेलगाड़ी की पटरियां सिखाती हैं
कि दो लोग कितने ही क़रीब क्यों न हो,
उन्हें इतना क़रीब नहीं होना चाहिए
कि अपना अस्तित्व ही खो दें.
वाह्ह्ह....लाज़वाब भाव लिए सुंदर रचना आपकी।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ! आभार
जवाब देंहटाएं"एकलव्य"
बहुत सुन्दर यथार्परक सृजन। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनाओं से ओत-प्रोत
जवाब देंहटाएंउन्हें इतना क़रीब नहीं होना चाहिए
जवाब देंहटाएंकि अपना अस्तित्व ही खो दें......बहुत सुन्दर!!!
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंकई बार ऐसे में जब अस्तित्व खो जाता है तो परिणाम भयानक हो जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण रचना ...