मुसाफ़िर,
तुम समझ रहे हो न
कि यह रेलगाड़ी है,
जो चल रही है,
तुम ख़ुद नहीं चल रहे.
मुसाफ़िर,
यह रेलगाड़ी है,
जो तुम्हें मंजिल तक पहुंचाएगी,
अगर यह रुक जाय,
तो शायद तुम पहुँच भी न पाओ
अपने बूते.
मुसाफ़िर,
किसी ने तुम्हें स्टेशन पहुंचाया,
कोई तुम्हें स्टेशन से ले जाएगा,
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा,
पर तुम्हें पग-पग पर
किसी की ज़रूरत होगी.
मुसाफ़िर,
कभी-कभी हमें लगता है
कि हम अकेले चल रहे हैं,
सब कुछ ख़ुद कर रहे हैं,
पर यह सच नहीं होता.
मुसाफ़िर,
वैसे तो तुम अकेले चल रहे हो,
हिम्मत का काम कर रहे हो,
पर यह न समझ लेना
कि तुम्हारे अकेले चलने में
किसी का योगदान नहीं है.
तुम समझ रहे हो न
कि यह रेलगाड़ी है,
जो चल रही है,
तुम ख़ुद नहीं चल रहे.
मुसाफ़िर,
यह रेलगाड़ी है,
जो तुम्हें मंजिल तक पहुंचाएगी,
अगर यह रुक जाय,
तो शायद तुम पहुँच भी न पाओ
अपने बूते.
मुसाफ़िर,
किसी ने तुम्हें स्टेशन पहुंचाया,
कोई तुम्हें स्टेशन से ले जाएगा,
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा,
पर तुम्हें पग-पग पर
किसी की ज़रूरत होगी.
मुसाफ़िर,
कभी-कभी हमें लगता है
कि हम अकेले चल रहे हैं,
सब कुछ ख़ुद कर रहे हैं,
पर यह सच नहीं होता.
मुसाफ़िर,
वैसे तो तुम अकेले चल रहे हो,
हिम्मत का काम कर रहे हो,
पर यह न समझ लेना
कि तुम्हारे अकेले चलने में
किसी का योगदान नहीं है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-08-2017) को "जीवन में है मित्रता, पावन और पवित्र" (चर्चा अंक 2688 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन प्रस्तुति
हटाएंसच है ... यूँ जीवन सफ़र में भी कितने सहयोगी होते हैं ...
जवाब देंहटाएंसही कहा ।
जवाब देंहटाएं