बोल, किस बात का डर है तुझे,
जो तेरे पास है, उसे खोने का
या उसे, जो तेरा हो सकता है?
बोल, क्यों चुप है तू,
कौन सा ताला है तेरे मुंह पर,
प्यार का, डर का या लालच का?
बोल, किस दुविधा में है तू,
क्या है, जो तेरे ज़मीर से बढ़कर है,
क्या है, जो तेरी इज्ज़त से क़ीमती है?
बोल, क्या चाह है तेरे मन में,
क्या इतनी छोटी है तेरी चादर
कि समा नहीं सकते उसमें तेरे पांव?
क्या हुआ तेरी ज़बान को?
देख, निकला जा रहा है वक़्त,
मुंह से नहीं, तो आँखों से ही बोल,
बोल, कुछ तो बोल.
जो तेरे पास है, उसे खोने का
या उसे, जो तेरा हो सकता है?
बोल, क्यों चुप है तू,
कौन सा ताला है तेरे मुंह पर,
प्यार का, डर का या लालच का?
बोल, किस दुविधा में है तू,
क्या है, जो तेरे ज़मीर से बढ़कर है,
क्या है, जो तेरी इज्ज़त से क़ीमती है?
बोल, क्या चाह है तेरे मन में,
क्या इतनी छोटी है तेरी चादर
कि समा नहीं सकते उसमें तेरे पांव?
क्या हुआ तेरी ज़बान को?
देख, निकला जा रहा है वक़्त,
मुंह से नहीं, तो आँखों से ही बोल,
बोल, कुछ तो बोल.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंभावनापूर्ण अभिव्यक्ति। सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंस्पष्ट अभिव्यक्ति !
बहुत उम्दा
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