अरे निगोड़े चाँद,
इतना भी मत तड़पाओ,
अब निकल भी जाओ.
कब से बैठी हूँ इस आस में
कि तुम निकलोगे तो कुछ खाऊँगी,
पर तुम हो कि जैसे
नहीं निकलने की कसम खाए बैठे हो.
रोज़ तो बड़ी जल्दी आ जाते हो,
खिड़की से झाँकने लगते हो,
आज जब तुम्हारी ज़रूरत है,
तो नखरे दिखा रहे हो,
तड़पा रहे हो.
क्या तुम भी पुरुषों की तरह हो,
हमारी वेदना से अनजान,
क्या तुम भी उन जैसे हो,
हमारी बेबसी पर हंसनेवाले.
चलो, बहुत हुआ चाँद,
अब निकल भी जाओ,
तुम्हारा क्रूर मज़ाक कहीं
तुम्हें महंगा न पड़ जाय.
कहीं ऐसा न हो
कि महिलाएं व्रत तोड़ने के लिए
तुम्हारा इंतज़ार करना छोड़ दें,
कहीं ऐसा न हो
कि करवा चौथ से तुम
निष्कासित कर दिए जाओ.
सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंaisa kabhi nahi hoga.....chand kitna bhi der se nikle...nikala nahi jayega....
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ... नारी शक्ति को प्रणाम ...
जवाब देंहटाएंचांद की राह देखती महिलाओं की व्याकुलता बखुबी व्यक्त की है आपने! लेकिन यह आस्था का सवाल है इसलिए चांद कभी भी निष्कासित नहीं किया जाएगा!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
जवाब देंहटाएंBahut sundar
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