चलो, आज शाम चलते हैं,
देखते हैं रावण का जलना,
बुराई पर अच्छाई की विजय,
देखते हैं कि किस तरह
राख हो जाते हैं दस सिर,
किस तरह मारा जाता है कुम्भकर्ण,
किस तरह बरसती हैं चिंगारियां
बेबस मेघनाद के बदन से.
चलो, आज शाम चलते हैं
दशहरे के मैदान में,
जहाँ हज़ारों लोग जमा होंगे,
बजाएँगे तालियाँ, देखेंगे तमाशा,
फिर घर लौट आएँगे.
यही होता है दशहरे में हर साल,
हर साल जलते हैं कागज़ के पुतले,
फूटते हैं पटाखे,
कभी किसी दशहरे में
यह ख़याल ही नहीं आता
कि असली रावण,कुम्भकर्ण,मेघनाद
हमारे अन्दर ही कहीं छुपे हैं,
जो हर साल दशहरे में
बच जाते हैं जलने से.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-10-2016) के चर्चा मंच "विजयादशमी की बधायी हो" (चर्चा अंक-2492) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंसच है अपने अनदर का रावण कोई नहीं जलाता ....
जवाब देंहटाएंBahut sundar
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