बड़ी फीकी रही इस बार की होली,
न किसी ने रंग डाला, न गुलाल,
न खिड़की के पीछे छिपकर
किसी ने कोई गुब्बारा फेंका,
न कोई भागा दूर से
पिचकारी की धार छोड़कर,
न कोई शरारत, न ज़बरदस्ती,
ऐसी भी क्या होली!
साबुन-तेल सब धरे रह गए,
बड़ी स्वच्छ, बड़ी स्वस्थ रही
इस बार की होली- नीरस सी,
कब आई,कब गई, पता नहीं.
होली के बाद मैं सोचता हूँ
कि इस साल मैंने दोस्त भी खोए
और दुश्मन भी,
न दोस्तों ने होली पर याद किया,
न दुश्मनों ने होली का फ़ायदा उठाया.
न किसी ने रंग डाला, न गुलाल,
न खिड़की के पीछे छिपकर
किसी ने कोई गुब्बारा फेंका,
न कोई भागा दूर से
पिचकारी की धार छोड़कर,
न कोई शरारत, न ज़बरदस्ती,
ऐसी भी क्या होली!
साबुन-तेल सब धरे रह गए,
बड़ी स्वच्छ, बड़ी स्वस्थ रही
इस बार की होली- नीरस सी,
कब आई,कब गई, पता नहीं.
होली के बाद मैं सोचता हूँ
कि इस साल मैंने दोस्त भी खोए
और दुश्मन भी,
न दोस्तों ने होली पर याद किया,
न दुश्मनों ने होली का फ़ायदा उठाया.
अब होली ऐसी ही हो चली है । गाँव छुटा तो पर्व त्योहार भी छूटते चले जा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंरंगोत्सव के पावन पर्व पर हर्दिक शुभकामनायें...सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उफ यह तो बहुत बुरा हुआ। बिन रंग होली तो बड़ी ही दुखदायी होती है।
जवाब देंहटाएंवक्त एक सा कहा रहता .यादें रह जाती हैं ...
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं!
बिना रंग होली का भी अपना अलग आनंद है।
जवाब देंहटाएंबेरंग होली , सच है
जवाब देंहटाएंहोली अब फीकी होती जा रही है ... वो बात नहीं रही अब इस त्यौहार में ...
जवाब देंहटाएंआज की दुनिया का यही रंग है कि सब बेरंग है... वक़्त बहुत बदल गया. भावपूर्ण प्रस्तुति.
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